केंद्रीय बजट 2024-25: महिलाओं और युवाओं में समग्र निवेश का अवसर खोया – पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने कहा


पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया इस बात से हैरान और निराश है कि केंद्रीय बजट 2024-25 में सरकार द्वारा GYAN के रूप में पहचाने गए महत्वपूर्ण सामाजिक समूहों- गरीब, युवा, अन्नदाता और महिलाओं के स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और सामाजिक सशक्तिकरण में पर्याप्त निवेश की उपेक्षा की गई है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा अपने भाषण में साझा की गई सरकार की नौ शीर्ष प्राथमिकताओं में स्वास्थ्य को गायब देखना बेहद अप्रत्याशित था।

पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर पूनम मुत्तरेजा ने कहा, “जब सरकार ने युवाओं और महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है, ऐसा लगता है कि इसने उनके स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक कल्याण में पर्याप्त निवेश करने की जरुरत को नजरअंदाज कर दिया है।” “यह जनसंख्या में  बदलाव और लोगों के स्वास्थ्य और कल्याण पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को स्वीकार करने में भी विफल रहा है।”

कल जारी आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ते कार्यबल को समायोजित करने के लिए गैर-कृषि क्षेत्र में 2030 तक सालाना औसतन लगभग 78.5 लाख नौकरियाँ पैदा करने की आवश्यकता है। यह आवश्यकता केंद्रीय बजट में परिलक्षित होती है, जो रोजगार, नौकरी सृजन और युवाओं के आर्थिक सशक्तिकरण पर केंद्रित है। वित्त मंत्री ने रोजगार और कौशल को प्रदान  करने के उद्देश्य से पाँच योजनाओं के प्रधानमंत्री पैकेज की घोषणा की, जिसमें ₹2 लाख करोड़ का आवंटन किया गया है। इसके अतिरिक्त, इस वर्ष शिक्षा, रोजगार और कौशल के लिए ₹1.48 लाख करोड़ का प्रावधान किया गया है। शिक्षा और कौशल ऋण, तीन रोजगार-संबंधी प्रोत्साहन योजनाएँ और पहली बार काम करने वाले कर्मचारियों पर ध्यान केंद्रित करने सहित कई उपाय पेश किए गए हैं। हालाँकि, ये उपाय मुख्य रूप से प्रत्यक्ष रोजगार सृजन के बजाय सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के लिए प्रोत्साहनों पर केंद्रित हैं, जो एक ऐसी ज़िम्मेदारी है जिससे सरकार को पीछे नहीं हटना चाहिए।

मुटरेजा ने कहा, “राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अंतिम दौर के सबसे चिंताजनक निष्कर्षों में से एक युवा लोगों के खराब पोषण परिणाम थे।” “एक अस्वस्थ, कुपोषित आबादी एक उत्पादक कार्यबल कैसे बन सकती है?” बजट में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में किसी भी दीर्घकालिक निवेश की घोषणा भी गायब थी, जो सतत कौशल विकास के लिए आवश्यक है। सख्त नियमों के कारण हाल के वर्षों में एनजीओ क्षेत्र में नौकरियों का नुकसान भी सभी क्षेत्रों में विकास की भावना के विपरीत प्रतीत होता है।

इसके अलावा, स्वास्थ्य क्षेत्र में वित्त निवेश कम है, जिससे स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे और सेवाओं की महत्वपूर्ण आवश्यकता की उपेक्षा होती है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग का बजट 2023-24 में 86,175 करोड़ रुपये से बढ़कर 2024-25 में 87,656 करोड़ रुपये हो गया है। यह पिछले साल से केवल 1.7% की वृद्धि है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का बजट 2023-24 में 29,085 करोड़ रुपये से बढ़कर 2024-25 में 36,000 करोड़ रुपये हो गया है (पिछले वर्ष से 24% की वृद्धि)। केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं/परियोजनाओं के तहत परिवार कल्याण योजनाओं का बजट 2023-24 में 516 करोड़ रुपये से बढ़कर 2024-25 में 694 करोड़ रुपये हो गया है (34% की वृद्धि)। पब्लिक हेल्थ सिस्टम  में दो नए गर्भनिरोधकों की शुरूआत को देखते हुए, यह देखा जाना बाकी है कि क्या यह पर्याप्त होगा।

महिलाओं की कार्यबल भागीदारी बढ़ाने के लिए उद्योग (industry) के सहयोग से कामकाजी महिलाओं के छात्रावास और क्रेच स्थापित करने का प्रावधान किया गया है। सरकार ने महिलाओं और लड़कियों को सक्षम बनाने की योजनाओं के लिए 3 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जो महिलाओं के नेतृत्व विकास के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को मान्यता देता है। लेकिन महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण के लिए आवंटन के बावजूद, महिलाओं के स्वास्थ्य और कल्याण को संबोधित करने वाली लक्षित पहलों का अभाव है। बजट में देश में तेजी से बढ़ती बुजुर्ग आबादी और इसके लिए जरूरी उपायों को स्वीकार करने के लिए भी बहुत कम किया गया।

मुत्तरेजा ने कहा, “भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है, जिसमें सबसे अधिक युवा आबादी है। देश को इस जनसांख्यिकीय लाभ (demographic dividend) का लाभ उठाने के लिए, इस आबादी के स्वास्थ्य में समग्र निवेश करना अनिवार्य है। हमारी आबादी में महिलाओं की हिस्सेदारी आधी है। महिलाओं के लिए न केवल आर्थिक अवसरों की आवश्यकता है, बल्कि स्वास्थ्य सेवा, विशेष रूप से यौन और प्रजनन स्वास्थ्य, पोषण और सामाजिक सुरक्षा तक पहुंच की भी आवश्यकता है।” वित्त मंत्री का बजट भाषण सरकार की प्राथमिकताओं को दर्शाता है। हालांकि रोजगार बढ़ाने पर बढ़ते फोकस को देखना उत्साहजनक है, लेकिन हमें उम्मीद है कि स्वास्थ्य पर ध्यान न देना पूरी तरह से अनजाने में हुआ होगा।

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